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व्यथा एक निर्दोष की

  • ranvirsinghgulia
  • Jan 3, 2021
  • 1 min read

Updated: Jan 4, 2021

मत कहना मुझ से याद रखने को कुछ

कोशिश भी न करना मुझे समझाने की


मैं खुश हूँ बस इसलिए कि तुम मेरे साथ हो

मेरे माथे पर चुम्बन और हाथ मेरे थाम लो

तुम्हारी उलझन की समझ के परे मैं उलझी हुई हूँ

शायद मैं बीमार दुखी और पगला गई हूँ

मैं बस इतना जानती हूँ मुझे साथ चाहिए

तुम्हारा हर समय हर हालत में

खो न देना अपना सब्र मेरे साथ

मेरे करहाने को दोष मत देना, न झुंझलाना

मैं लाचार हूँ मैं ऐसी तो नहीं थी ना

मैं चाहकर भी बदल नहीं सकती

मेरा सर्वोत्तम कही पीछे खो गया है

मुझे अब बस तुम्हारी जरुरत है

मेरा साथ न छोड़ना बस

कहीं पढ़ी किसी अंग्रेजी कविता का अनुवाद –

अल्ज़ाइमर की ओर बढ़ते कदम - २०१५

 
 
 

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1 Comment


madhugautam384
Jan 08, 2021

कई सदियों से, कई जन्मों से ,

तेरे प्यार में पागल मेरा मन !!!

वाला प्यार !!

क्या बात है!!!!

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