मन करता है
कुछ का कुछ बोलने को
कोई हो न हो सुनने को
मन करता है
कुछ बात करने को
पर वह हो तो सही सुनने को
चाहते हैं मुझे जो
चाहते हैं वो
मैं बोलता रहूँ उनके लिए
कहते हैं कौन बोलता है आजकल
मैं सोचने लगता हूँ उसी पल
कुछ का कुछ बोलने को
कोई अपना तो है सुनने को
नहीं हूँ धर्म नेता
और न राजनेता
ये भी कुछ का कुछ बोलते हैं
सपने दिखाते हैं
छल करते हैं
बोलने की आड़ में
लगे हुए प्रचार में
अपने अपने व्यापर में
धर्म नेता हो या राजनेता
हो जाते हैं अधमरे
जो न मिले श्रोता
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