मूल्य अमूल्य
- ranvirsinghgulia
- May 11, 2021
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सभ्यता रह गई है सिमट कर
क्षमता जो सुविधाएं पा कर
नैतिकता को ठुकराकर
छीन कर या खरीदकर
दिखा सके अहंकार अपना
वंचित कर अधिकार सबका
चोर डाकू व हत्यारे
हर युग में हुए बहुतेरे
शाषक जो बन जाते हैं
नाम मूल्यों का लेते हैं
नैतिकता की दुहाई देते हैं
धर्म या देश की आड़ में
सुविधा क्षमताएं बढाते हैं
छीन कर या खरीद कर
जानते हैं अच्छी तरह
एक नहीं होती
दो धर्मों की नैतिकता
एक नहीं होती
दो देशों की नैतिकता
मूल्य होते हैं केवल मानवता के
जो खरीदे नहीं जा सकते
क्योंकि वे अमूल्य होते
जो छीने नहीं जा सकते
क्योंकि वे समाहित होते
कभी कभी मैं हूँ सोचता
युगों का समय बीत गया होगा
जब बनी होगी वह सभ्यता
जिसने कुटुंब समझी वसुधा
सर्वजन हिताय बनी नैतिकता
सर्वजन सुखाया बनी नैतिकता
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