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प्रजातंत्र

संसार का सब से बड़ा प्रजातंत्र है

पर यह कैसा प्रजातंत्र है

जिसमें न प्रजा है न तंत्र है

प्रजा के नाम पर विधायिका

समूह है विभिन्न दलों का

हर दल की अपनी नीति

मुखरित करते अपनी शैली

नहीं ज़रूरी समर्पित होना

हर सदस्य करता मूल्य अपेक्षा

देता तर्क नहीं कहलाए वह बंधुआ

बदल देता है निष्ठा

यदि पूरी न हो इच्छा

लड़ते चुनाव विरुद्ध एक दूसरे के

नीति और शैली भूलते

जनता से किए वचन भूलते

हो जाते एक बहुमत के लिए

केवल दल तंत्र है यह

कैसा प्रजातंत्र है यह

चुनाव समय दल संख्या बढ़ जाती

प्रत्याशी संख्या बढ़ जाती

चयन में प्रजा संख्या घट जाती

कहते अपने को प्रतिनिधि प्रजा का

अधिकतम है नगण्य प्रतिशत का

आधी प्रजा नहीं जानती मतदान कैसा

और संभव नहीं है ऐसा

एक प्रतिशत को भी जानना

पहचानना और याद रखना

आधी जनता ने भी नहीं देखा चेहरा

घर बाहर लगा रहता है पहरा

फिर प्रतिनिधि कैसा

छल तंत्र है यह

कैसा प्रजातंत्र है यह


विधायक बनता शासक

चाहिए जिसे होना आदर्श

हो सकता है कौशल विहीन

विद्या विहीन चरित्रहीन

योग्यता जिसकी केवल आयु

होता स्वयं बिकाऊ

करता प्रजा बिकाऊ

विधायक मानकर चलता

एक मूर्ख समूह है प्रजा

हर पांच वर्ष में देता प्रलोभन

निश्चित करने अपना चयन

योग्यता विहीन अंग शासन का

करता नियंत्रण दक्ष भागों का

करते हैं जो स्वेच्छा समर्पण

लक्ष केवल प्रजा दमन

शोषण तंत्र है यह

कैसा प्रजातंत्र है यह

नहीं कोई योग्यता जिसकी

अपेक्षा सृजन ऐसे विधान की

विषयवस्तु हो जो विद्वान की

जानता है वह भी

कार्यपालिका यह काम करती

तो ज़रूरत क्या है विधायिका की

समझ नहीं है ज़रूरी

उसे तो केवल हाथ उठाना है

यदि उसके दल की इच्छा है

और दल हैं परिवार निर्मित

या कहने को भिन्न नीति आश्रित

सत्ता मिलने पर या पाने को

निर्मित करते नए दलों को

सिंचित करते अपराधी तत्त्वों को

डरा सकें जो प्रजा को

कार्य व न्यायपालिका को

देर नहीं लगती कार्यपालिका को

दूषित होते या करते न्यायपालिका को

पालने लगते हैं अपराधी तत्त्वों को

आदर्श सबके हो जाते हैं विकृत

लक्ष्य है सत्ता सुख तक सीमित

केवल कुछ के लिए निर्मित

सत्ता सुख भोग तंत्र है यह

कैसा प्रजातंत्र है यह

शासक प्रशासक बनें आदर्श

प्रजातंत्र जननी है भारतवर्ष

निश्चित करें योग्यता हर अंग की

कौशल साथ वित्तेष्णा रहित की

कठिन नहीं है खोजना

ऐसे दशमलव प्रतिशत का

छोड़नी होगी नक़ल मानसिकता

उपहार नहीं है कोई दासता

नहीं कर सकते तो समय नहीं है

कहने को दुनिया बैठी है

संसार का सबसे बड़ा भ्रष्ट तंत्र है

यह कैसा प्रजातंत्र है

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