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ढलती याद

  • ranvirsinghgulia
  • May 11, 2021
  • 1 min read

याद रहता था जब बस इतना

हाँ यह मुझे याद था

कल इसमें कुछ जुड़ गया

फिर कुछ भी नहीं हो गया

और मेरी समझ में आ गया

कुछ आयाम होते हैं याद के भी

अँधेरी गलियों में है धकेल देती

उन क्षणों को जो बनते है बाधा

सुरक्षा में जिनका योग नहीं रहता

पर सुरक्षा हो जाती है सीमित

साँस लेने और मुस्कराने तक

बिन बोले कहती है वह बात

जीवित थी तब कहती दिन रात

मत मजबूर करो भूलने को

जीवन तो है हल खोजने को

 
 
 

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