top of page
Search

चलती फिरती लाश

  • ranvirsinghgulia
  • Feb 20, 2021
  • 1 min read

एक युग था एक प्रथा थी

नई पीढ़ी आसीन होती थी

पुरानी वरदान देती थी

दोनों प्रतीक्षा करती थी

सुन्दर को सुन्दरतर बनाने की

सम्मान था शेष जीवन जीने में

अरमान था आनंद से विदा कहने में


धूमिल हो गई प्रथा


हुआ जन्म अहंकार का

वरदान नहीं चाहिए था

प्रश्न बना अधिकार का

भाग हूँ एक विस्मृत प्रथा का

हूँ अब एक चलती फिरती लाश


रहता हूँ निशि दिन जिसके साथ

वह भी है एक लाश


चलती फिरती नहीं है

बोलती भी नहीं है

बस मुस्कुराती है

और साँस लेती है

छलनी हुआ था मन

कटु शब्दों की जलन

प्रकृति भी हुई आहत

लिया अंक में झटपट

अपनी सुन्दरतम रचना को

नष्ट किया उसके शब्दज्ञान को

बस छोड़ दिया मुस्कान को

जीवन की आस ने

हमें बदल दिया है लाशों में


घिर गए हैं हम लाशों से

जो शाश्वत समझते थे जीवन

कटु वचनों से छलनी कर मन

जो नहीं जानती

अब यह भी

खुद लाश बन गई हैं वे

हमें लाश बनाते बनाते

मूल्य व्यर्थ हैं उनके लिए

केवल स्वार्थ चाहिए

जिन्हें जीने के लिए



 
 
 

Recent Posts

See All
कल आज और कल

आज परिणाम है कल का कल परिणाम होगा आज का आज को सुंदर से सुन्दरतर बनाने की चाह में विकृत किया मानव ने कल को पूर्व व पुनर्जन्मों में स्वयं...

 
 
 
विश्वास

विश्वास है यदि कुछ तो वह केवल आत्म-विश्वास ज्ञान आधारित जिसका जन्म और विकास ज्ञान के लिए केवल पुरुषार्थ नहीं तो है अंध-विश्वास महानतम...

 
 
 
क्षमा करो

क्षमा करो और भूल जाओ मान क्षमा को शक्ति गुण गाओ व अपनाओ पहनकर क्षमा परिधान स्वयं को समझना महान किसी धूर्त की वंचिका है यह किसी अपराधी की...

 
 
 

Comentarios


©2020 by kuch ka kuch. Proudly created with Wix.com

bottom of page