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एक ही समय में


एक ही समय में

जीवित भी मैं मृत भी मैं

एक ही समय में

सुप्त भी मैं जागृत भी मैं

सहज बहकाने को

ध्यान की यह अन्तिम सीमा

वे कहते हैं इसे समाधि


नहीं करेंगे स्वीकार

इसे एक निरुपचार व्याधि










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