आधे अधूरे
- ranvirsinghgulia
- May 11, 2021
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सुख छोटा लगता है
दुःख बड़ा हो जाता है
अपने बन जाते हैं पराये
पराये हो जाते हैं अपने
अच्छा बन जाता है बुरा
बुरा बन जाता है अच्छा
जो कल तक था
मोटा खाना पहनना
आज हुआ दुर्लभ मिलना
कैसी है विडंबना
स्वयं हैं आधे अधूरे
मानक हैं आधे अधूरे
पर दावा पूर्ण ज्ञान का
और हूँ इतराता
पूर्ण ज्ञान तो है ईश्वर
नहीं हो सकता निर्भर
सुख दुःख आत्म अनात्म पर
शुचि अशुचि नित्य अनित्य पर
सृजन नहीं संभव ऐसे मानकों पर
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