अर्पण
- ranvirsinghgulia
- May 11, 2021
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अर्पण तन हो या मन
क्रिया में हो तड़पन
तो है ये शोषण
अर्पण के लिए हो तड़पन
तो है ये तर्पण
फिर कैसा शोषण
तर्पण को कहना शोषण
शोषण को कहना तर्पण
राजनीति का दर्शन
चिरकाल से है चलन
बिकते आये हैं तन
बिकते आये हैं मन
निर्भर हैं बहु संख्यक जन
वित्त बिना कैसे जीवन
जब बिकना लक्ष्य हो अर्पण का
तो फिर क्या रोना शोषण का
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