जिसे समझते हैं विश्वास
वह केवल आत्म-विश्वास
ज्ञान आधारित जन्म जिसका
ज्ञान निर्भर ही विकास इसका
ज्ञान के लिए केवल पुरुषार्थ
नहीं तो है अंध-विश्वास
आस्था से उत्तम नहीं कोई प्रेरणा
ज्ञान स्रोत अतिथि गुरु व मात पिता
प्रथम देवता पूजा भक्ति के
बनना है यदि संपन्न शक्ति के
जिनमें हैं प्राण
करते अपमान
जहाँ संभव नहीं करते हैं प्राण प्रतिष्ठा
शायद नहीं चाहते कोई दे शिक्षा
नहीं चाहते कोई करे ताड़ना
चाहते मिटटी की मूक मूरत से डरना
जिस ईश्वर ने जन्म दिया
उस ज्ञान में नहीं रखते आस्था
जिस ईश्वर की हम ने की रचना
उस मिटटी मूरत में कैसी आस्था
कर्तव्य प्रति होती है आस्था
लक्ष्य प्रति होती है आस्था
निश्चय को बल देती आस्था
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